अगर -मगर कुछ तो कहा होगा?
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही कहाँ जुड़ते है रिश्ते,
यों ही तो नहीं मिलते अपने।
जब बात हुई तो,
कुछ तुमने कुछ उसने,
कहा तो होगा,
किसी बात पर प्रेम,
किसी पर क्रोध तो जताया होगा,
कुछ तो स्वीकार किया होगा?
यों ही तो नहीं टूटते रिश्ते।
जब मोहब्बत थी,
तो शिकवा किस बात का?
कोई तो बात हुई होगी,
यों शांत ना रहो,
कुछ तो कहो,
यों ही तो शिकवे नहीं होते।
बस बता दो खता,
क्यों तोड़ा था रिश्ता?
कमजोर तो नहीं था इश्क अपना,
फिर काँच सा क्यों बिखरा?
बस तुम बतला दो,
कि तुमसे उम्मीद रखूं,
या अपने इश्क को खो जाने दूँ?
यों ही तो इश्क में फना नहीं होते।
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