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नए किरदार मैं बनाती हूँ,
नित नया नाम, नई पहचान देती हूँ,
हर रोज़ एक नई कहानी बुनती हूँ।
कहने को बस किरदार है,
शायद बस एक नाम है,
ना पता है, ना ठिकाना,
पर मेरे रोम रोम में बसा,
वो मेरा अपना साया है।
कहने को आसान है,
पर लेखन एक एहसास है,
जिसे कोई समझ नहीं पाया है,
शौकिया है तो कर लो, सब कहते है,
ग़र समझ नहीं पाते है,
मेहनत तो सब में है,
अरे! ऐसे ही शब्द कहाँ आते है,
सोचो, महसूस करो, तब ही कुछ लिख पाते हैं।
किरदार यों ही नहीं बन जाते,
वो तराशे जाते है,
शब्द नहीं, जज़्बातों में ढाले जाते है,
लेखक के जज़्बातों से जो रूप निखरता है,
तब जाकर एक किरदार बनता है।
किरदार से ही तो बनती है कहानी,
जो सुनते हो तुम लेखक की जुबानी,
यों ही तो ना कह डाली,
उस किरदार को जी कर ही तो लिखते हैं हम कहानी।
बहुत सुंदर!