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बिखरते सामाजिक मूल्य - कारण और निदान

Writer's picture: Roohi BhargavaRoohi Bhargava



सामाजिक मूल्य समाज के प्रमुख तत्व है. यह मूल्य वे मानक है जिनके आधार पर हम किसी के व्यवहार, लक्ष्य,और गुणों को सही-गलत या अच्छा - बुरा ठहराते हैं। 


डॉ राधाकमल मुखर्जी कहते हैं कि मूल्य मानव समूहों और व्यक्तियों के लिए प्राकृतिक और सामाजिक दुनिया के साथ सामंजस्य स्थापित करने के उपकरण है। 


दुर्थीम के अनुसार मूल्य सामाजिक सदस्यों की मानसिक अनुक्रिया का परिणाम होते है। 


इन्हीं मूल्यों के आधार पर हम समाज की प्रगति, उन्नति और परिवर्तन की दिशा निर्धारित करते है। हमारा जीवन इन्हीं सामाजिक मूल्यों पर निर्भर रहता है।  ये मूल्य ही व्यवहार का सामान्य तरीका है।


सामाजिक मूल्य समाज को व्यवस्थित रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यह मूल्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पाए जाते है। जब भी हम एक नई चीज शुरू करते है , तभी यह सामाजिक मूल्य हमारे काम आती है। परिवार एक महत्तवपूर्ण सामाजिक संस्था कही जाती है। एक परिवार के माध्यम से संस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों का  संरक्षण होता है। हालांकि, हर समाज की विचारधारायें अलग अलग हो सकती है। सामाजिक मूल्यों के आधार पर ही सामाजिक तथ्यों और अनुभवों का ज्ञान मिलता है। 


 निम्न नैतिक मूल्य जो समाज में होने ही चाहिए: 



  • बड़ों का आदर करना 

  • हर संस्कृति का आदर करना

  • परिवार को वक़्त देना

  • क्षमा कर देना

  • हर परिस्थिति में धैर्य रखना

  • खुद पर भरोसा रखना

  • सब की मदद करना

  • समभाव से चलना 

  • हमेशा सच के साथ चलना 

  • दया करना 

  • सभी के साथ प्रेम से रहना 


यह सभी सामाजिक मूल्य आदिकाल से चले आ रहे हैं, और इन्ही मूल्यों पर समाज का विकास सम्भव है। मनुष्य के अंदर इन सामाजिक मूल्यों का का विकास होने से वो मानवता के सही दिशा में ले जा सकते है। ये मूल्य ही मनुष्य को अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं और उद्देश्यों का ज्ञान करवाते है और साथ उन्हें अपने परिवार और सामाजिक संबंधों में सामंजस्य बैठाने में सहयोग प्रदान करते है।


बदलते सामाजिक मूल्य 


आधुनिक समय में नैतिक और सामाजिक मूल्य बदलते जा रहे हैं।  सरल भाषा में कहा जाए तो सामाजिक मूल्य गतिशील होते है। सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन समाज की व्यवस्था को भी प्रभावित करता है। इन मूल्यों में परिवर्तन की वजह से धन का महत्व बढ़ गया है। आइए जानते है कुछ समस्याएं, जिनकी वजह से सामाजिक मूल्य बदल रहे है: 


  1. आधुनिक तकनीक: आधुनिकता ही इस समय की सबसे बड़ी समस्या है। आधुनिक तकनीक ने लोगों की सोच को बदल दिया है। सामाजिक मीडिया ने अपनी एक अलग जगह बना ली है। इस तकनीक ने लोगों के बात करने के तरीके को बदल दिया है। आजकल लोग मिलने के बजाय सामाजिक मीडिया पर बात करना पसंद करने लगे है।

     

सामाजिक मीडिया भी एक समस्या है। जो उनको दिखता है, उसे ही सच मान लेते है. वैसे भी सामाजिक मीडिया में लोग वही डालते है जो वो दिखाना चाहते है। उसके परे लोग कुछ देखना भी नहीं चाहते। और फिर प्रतिस्पर्धा शुरू होती है और सभी एक दूसरे की बराबरी करने में लग जाते है। प्रतिस्पर्धा की वजह से ही सामाजिक मूल्य टूटते जा रहे है।


आधुनिक समय में सभी लोग कंप्युटर, मोबाइल में व्यस्त रहते है। इस वजह से आज सभी मशीनी मानव बन चुके है और सामाजिक मूल्य अपना महत्व खो चुके है। किसी के पास समय ही नहीं है दूसरों के लिए। सभी अपने आप को ही महत्व देना जानते है। 


  1. परिवार: सामाजिक मूल्य परिवार से ही मिलते है। जैसे कि हम जानते है कि परिवार भी दो प्रकार के हो गए है – एकल और संयुक्त परिवार. पुराने समय में सभी लोग संयुक्त परिवार में रहा करते थे।

        

उस समय बच्चे, बड़ों को देख के सब सीख जाते थे। जैसे जैसे बड़े करते थे बच्चे भी वैसा ही करते थे। परंतु अब एकल परिवार ज्यादा हो गए है और ऐसे में बच्चे अकेलापन महसूस करते है और ज्यादातर समय अकेले रहना पसंद करते है। 


काम की वजह से आज के युवा अपने परिवार से दूर हो गए है। आजकल बड़े शहरों में सबको काम करना पड़ता है। जब माता पिता दोनों ही काम पर चले जाते है, तो बच्चे घर में अकेले रह जाते है। समय ना दे पाने के कारण माता पिता अपने बच्चों की हर इच्छा पूरी करते है। वे अपने आप के बारे में ही सोचते है और अब वे बहुत स्वार्थी हो गए है। उनकी उम्मीदें बढ़ चुकी है, और अब वे सब कुछ अपने लिए ही चाहते है। वे दूसरों के प्रति कोई भाव नहीं रखते। आजकल बच्चे बहुत अधीर हो गए है, और उन्हें नैतिक मूल्यों की ज्यादा जानकारी भी नहीं रहती। 


  1. संस्कृति: यों तो दुनिया में कई अलग अलग संस्कृतियां है, किन्तु, सामाजिक मूल्य तो सभी के लिए एक समान है। हाँ, भिन्न संस्कृतियों के लोगों की अपनी अलग अलग धारणाएं है,और इसी वजह से कई बार सामाजिक मूल्य बदल जाते है। और अब तो संस्कृतियों में भी आधुनिकता आ चुकी है और इसका सबसे ज़्यादा असर सामाजिक मूल्यों पर पड़ा है क्योंकि आधुनिकता की चमक में हम अपने सनातन मूल्यों को भूल चुके है।


  1. अर्थव्यवस्था: आज के समय में नौकरी सबसे महत्वपूर्ण है। अर्थव्यवस्था भी सामाजिक मूल्यों के टूट जाने की एक वजह है। आजकल नौकरियाँ भी बदल रही है और जैसे जैसे लोग महत्वकांक्षी होते जा रहे है, सभी को अपने आप की परवाह है। वे लोग अपनी खुशियों को बढ़ाने में और अपनी महत्वकांक्षा को पूर्ण करने में ही लगे रहते है। ऐसे में वे सामाजिक मूल्य भूलते जा रहे है। सामाजिक मूल्यों को निभाना उन्हें एक बोझ लगने लगा है। नैतिक मूल्य पैसे से हार जाते है। 


  1. विज्ञान: विज्ञान में भी निरंतर बदलाव आ रहे है। हर सामाजिक मूल्य के पीछे वैज्ञानिक सिद्धांत  बता दिया गया है जिस वज़ह से बदलाव आ रहे है। हर परम्परा के पीछे एक वैज्ञानिक कारण दे दिया गया है। इस वजह से सही -गलत को पहचानना मुश्किल हो गया है। इन्हीं कारणों से पारंपरिक महत्व कम हो गया है और लोग अपनी परम्परा और तरीके पीछे छोड़ते जा रहे है, उनके शब्दों में आधुनिकता से हाथ मिलाना ही समझदारी है। 


  1. राजनीति: राजनीति भी सामाजिक मूल्य टूटने का एक मुख्य कारण है। हमारे देश में ही कई राजनीतिक पार्टियां है और सभी की अलग विचारधारा और सोच है, जब ये विचारधारायें और सामाजिक मूल्य आपस में टकराते है तो सबसे ज्यादा असर सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर ही पड़ता है। 


  1. भूमंडलीकरण: भूमंडलीकरण भी एक कारण है। आजकल आधुनिक तकनीक और सोशल मीडिया की वजह से सभी लोग जुड़े हुए है और इस वजह से सभी की विचारधारा बदल रही है, क्योंकि कई संस्कृतियां एक साथ जुड़ गई है तो उस वजह से लोग आधुनिक संस्कृति अपनाने पर जोर दे रहे है। 


  1. नैतिकता और सामाजिकता: इन दोनों के बीच का सामंजस्य बिठाना भी एक कारण है कि आज सामाजिक मूल्य बिखर रहे है। यदि कोई अपने बारे में सोचे तो यह कहा जाता है कि वो समाज के बारे में नहीं सोचता और इस वजह से आज सामाजिक मूल्य कहीं ना कहीं बिखर रहे है।



सामाजिक मूल्यों को बचाए रखने के लिए कुछ निदान:


कहा जाता है कि परिवर्तन संसार का नियम है। आज के समय में सामाजिक मूल्यों में बहुत बदलाव आ चुका है। बहुत सारे बदलाव आ चुके है जिस वजह से सामाजिक मूल्य बिखर रहे है। 


  1. शिक्षा: शिक्षा के माध्यम से लोगों में सामाजिक मूल्यों के बारे में जागरुकता फैलानी चाहिए। विद्यालयों में नैतिक शिक्षा को एक विषय के रूप में पढ़ाना चाहिए। यों तो परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला होता है लेकिन विद्यालयों में भी इन सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, चाहे बड़े हो बच्चे, सभी को ईन मूल्यों का पालन करना चाहिए। आखिर बच्चे वही सीखेंगे जो वे देखेंगे। सभ्य संस्कारों को बाल्यकाल से ही विकसित किया जाना चाहिए। कहानियों और नाट्य मंचन के द्बारा सामाजिक मूल्यों का महत्व दर्शाना चाहिए। बच्चों को सामाजिक मूल्यों के बारे में सिखाने के लिए पौराणिक और एतिहासिक कहानियों से बेहतर कोई जरिया नहीं होता। उन्हें किताबें और कहानियाँ पढ़ने की आदत डालें।


  1. सामाजिक कार्यक्रमों से शिक्षा : हम सभी एक समाज का हिस्सा है। यहां रहकर सभी से मेल-जोल रख कर ही हम एक साथ रह सकते है। ऐसे में समय समय पर समाज के अंतर्गत सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। इन कार्यक्रमों में अलग अलग विषयों की चर्चा होनी चाहिए जिससे सभी को एक नई सीख मिले। जब कई लोग एक साथ आते है तो बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है। 


  1. परस्पर कार्यशैली: समाज में रहते हुए हमें एक दूसरे की कार्यशैली पर ध्यान देना चाहिए। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हम हर किसी से कुछ ना कुछ सीखें। विशेष तौर पर बच्चों को समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों का उदाहरण देना चाहिए।


  1. परिवार: प्रेमचंद कहते है कि कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं। 

बच्चे आदर, दया, क्षमा, सच बोलना, यह सब घर से सीखते है। इसीलिए परिवार को प्रथम पाठशाला कहा गया है। परिवार में सभी सदस्य, बड़े और छोटे, परस्पर बोलचाल, मर्यादा, और लिहाज से वातावरण स्वस्थ और अनुकरणीय बनाए। 


यदि हम समाज में एक साथ रहेंगे, एक दूसरे को समझेंगे, और साथ ही बच्चों को सही शिक्षा देंगे, तो ही हम एक सामाजिक इकाई के रूप में आगे बढ़ पाएंगे। सामाजिक मूल्यों को सम्भाल कर रखना समाज की जिम्मेदारी है। 


नैतिक मूल्य हैं मनुष्य के आधारस्तंभ,

सही पथ पर जीवन यात्रा करें आरंभ। 


सभी को कोशिश करनी होगी, तब ही हम इन सामाजिक मूल्यों को आने वाली पीढ़ियों के लिए हस्तांतरित कर के रख पाएंगे। जब आज की युवा पीढ़ी इन मूल्यों को समझेगी, अपनाएगी, तभी हम एक समाज के रूप में आगे बढ़ पाएंगे।  


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