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आज के समय में धार्मिक शिक्षा की आवश्यकता

Writer's picture: Roohi BhargavaRoohi Bhargava


“धर्म” शब्द संस्कृत शब्द “धर्मन” से प्राप्त किया गया है जिसका अर्थ है सहयोग करने वाला या धारण करने वाला। जिसे सबको धारण करना चाहिए, वही धर्म है।  


 धर्म एक ऐसा सिद्धांत है जिसके हर धर्म में अलग अलग अर्थ होते है। धर्म से ही जीवन संचालित होता है। कई धर्मों की अलग अलग परम्परायें है, जैसे मंदिर जाना या चर्च जाना। कई धर्मों में पूजा अर्चना करने के लिए भी अलग अलग विधाएँ होती है और साथ ही विशिष्ट कपड़े पहनना पसंद करते है। 

                                                                                                                                                               वेदों और पुराणों में धर्म से जुड़ी इतनी कहानियाँ है कि हर कहानी में एक नई बात निहित है। हर कहानी को हर बार एक नए अंदाज में पेश किया जाता है और हम वही सच समझ लेते है। 

 

हमारे यहां ऋषि और मुनियों का मानना है कि “मानव के लिए धर्म मनसा, वाचा, कर्मणा होता है। यह केवल क्रिया या कर्मों से संबंधित नहीं है , बल्कि चिंतन और वाणी से भी संबंधित होता है।”


जिस्वर्ट के अनुसार "धर्म दोहरा सम्बंध स्थापित करता है। प्रथम सम्बंध होता है मनुष्य और ईश्वर के बीच और द्वितीय सम्बंध मनुष्यों के बीच होता है।"


महात्मा गांधी के अनुसार "धर्म वह शक्ति है जो व्यक्ति के बड़े से बड़े संकट में उसको ईमानदार  बनाए रखती है। यह इस संसार में और दूसरे में भी व्यक्ति की आशा का अंतिम सहारा है।"


धर्म की अवधारणा 16वी और 17वी शताब्दी में बनाई गई थी किन्तु, धर्म से जुड़े विचार किसी भी पवित्र ग्रंथ, जैसे बाइबल, कुरान या किसी और ग्रंथ में, धर्म से जुड़ी कोई बात लिखी नहीं गई थी।






धर्म क्या है ?


धर्म का मुख्य अर्थ है ईश्वर की सेवा और पूजा करना। धर्म में नैतिक मूल्य, सामाजिक  और एतिहासिक मान्यताएँ, और भिन्न संस्कृतियों के बारे में बताया जाता है। धार्मिक शिक्षा का अर्थ है किसी भी विशेष धर्म से जुड़ी मान्यताओं के बारे में सिखाना। 


धर्म और शिक्षा एक दूसरे से संबंधित है और उनको अलग नहीं किया जा सकता। धर्म के बिना शिक्षा अधूरी मानी जाती है। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का पूर्ण विकास करना होता है, और वहीं दूसरे तरफ शिक्षा का लक्ष्य मानव जीवन का निरंतर विकास करना होता है।


धर्म का उद्देश्य होता है ईश्वर की उचित पूजा और आज्ञाकारिता प्रदान करना होता है। विभिन्न धर्मों में मोक्ष और ईश्वर का अलग अलग अर्थ होता है।


धार्मिक शिक्षा की आवश्यकता क्या है?


धार्मिक शिक्षा में सभी धर्मों में पाए जाने वाले एक जैसे गुणों और सत्य का ज्ञान कराया जाना चाहिए। धर्म की शिक्षा व्यक्ति की क्षमता और व्यक्तित्व का विकास करने वाली प्रक्रिया है। बच्चों में सभी धर्मों के समान गुण विकसित करने चाहिए। उन्हें प्रसिद्ध संतों की जीवनी का अध्ययन कराना चाहिए। शिक्षा देते समय विभिन्न धर्मों के संस्कारों की तुलना नहीं की जानी चाहिए। धार्मिक शिक्षा की मदद से ही हम श्रेष्ठ कर्म कर सकते है। और हमें वही करना चाहिए।


धार्मिक शिक्षा के उद्देश्य:


  1.  धार्मिक शिक्षा का पहला सबक है “वसुधैव कुटुम्बकम”। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि संसार में हम सभी एक परिवार की तरह है, और इसलिए हमें सभी के साथ प्रेम से रहना चाहिए और ना ही किसी से घृणा नहीं करना चाहिए। 

 

  1. नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का विकास: धर्म से जुड़ी मान्यताओं को लेकर कई कहानियां प्रचलित है। ये कहानियां ही मनुष्य में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करती है। कहा जाता है कि हर धर्म की अपनी अलग कहानियां है और उनसे ही हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है। ये मूल्य ही मनुष्य की इच्छा शक्ति को बढ़ाता है और व्यक्ति ईश्वर के प्रति झुकता है। 

 

  1. व्यक्तित्व विकास: धार्मिक शिक्षा की वजह से सभी लोगों में सद्गुणों का विकास होता है। मेडन वार्ड के अनुसार “धार्मिक शिक्षा मनुष्य में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का समर्थन करती है। इन मूल्यों का विकास मनुष्य को लघुता से महानता की ओर ले जाता है। यह मनुष्य की इच्छाशक्ति को मजबूत करता है और मन की एकाग्रता को विकसित करता है। ये मूल्य मनुष्य को गलत रास्ते पर जाने से रोकते हैं और अच्छे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं।”


 बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने का उद्देश्य ही उन्हें सदाचारी, विनम्रता, ईमानदारी, परोपकारी बनाना है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को धर्म की शिक्षा देते समय, किसी भी धर्म का अपमान नहीं कर चाहिए और ना ही दो धर्मों की तुलना करनी चाहिए।


  1. संस्कृति का विकास: संस्कृति धर्म का अभिन्न अंग है। धर्म पर आस्था तो सभी रखते है, लेकिन हमें अपनी संस्कृति पर भी आस्था रखनी चाहिए। धर्म और संस्कृति को वापस में जोड़ कर, संस्कृति का विकास सभा है। हम अपने ज्ञान से संस्कृति का प्रचार कर सकते है और साथ ही सभी धर्मों का सम्मान करना भी सीख सकते है। धर्म भिन्न है लेकिन उनके उद्देश्य एक समान होते है। धार्मिक शिक्षा की वजह से ही संस्कृति का विकास सम्भव है। 

 

  1. व्यापक दृष्टि का विकास - धार्मिक शिक्षा से व्यक्ति में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का विकास होता है। धर्म हमने ये सिखाता है कि हमें निस्वार्थ हो कर कार्य करने चाहिए और मानव सेवा में मन लगाना चाहिए। इन भावों के विकसित होने से मनुष्य में व्यापक दृष्टि का विकास सम्भव है। 

 

धर्म का उद्देश्य है मनुष्य को उचित शिक्षा देना और उसको उसके जीवन का महत्व समझाना। जब हम धर्म से जुड़ी कहानियां सुनते है या पढ़ते है तो हम हर बार कोई नई सीख सीखते है, और हमें उस सीख को अपने जीवन में अपना लेना चाहिए।


धर्म एक प्रकार की शिक्षा है, और शिक्षा अनेक प्रकार से धर्म से जुड़ी हुई है। धार्मिक शिक्षा का परिचय सही समय पर होना चाहिए, ताकि लोग विभिन्न धर्मों के बारे में समझ सकें। धार्मिक शिक्षा से व्यक्ति ना सिर्फ अपने धर्म के बारे में सीखता है, बल्कि दूसरे धर्मों को भी सीख लेता है। मनुष्य को हर धर्म का सम्मान करना चाहिए और साथ ही हर महापुरुष से, हर धर्म से एक अच्छी शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।


यह भी कहा जा सकता है कि धार्मिक शिक्षा से लोग अंधविश्वासी हो सकते है। साथ ही यदि धर्मों की तुलना की जाए तो कई समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है। हालांकि, अब समय बदल चुका है, और सभी लोग धर्म और उससे जुड़ी हर बात को सकारात्मक तरीक़े से समझते है।


कहा जाता है - 


“शिक्षा में सबसे ज्यादा शक्ति होती है, जिससे पूरे संसार को बदला जा सकता है।”


“जिस रास्ते पर चल कर व्यक्ति को सुख मिले, जो रास्ता सच्चा लगे, वही धर्म है।”


धर्म और शिक्षा दोनों ही व्यक्ति, परिवार, समाज, और देश के विकास के लिए है। धार्मिक शिक्षा से ही जीवन के उद्देश्य का ज्ञान मिलता है। हमें प्रयास करना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति, धर्म और आधुनिकता में संतुलन बना कर एक खुशहाल जिंदगी जी सके।


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